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(as of Jul 31, 2021 19:37:50 UTC – Details)
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Madam Curie (Hindi) by Vinod Kumar Mishra
उन्होंने इस बात को भी प्रमाणित किया कि शांति-काल में वैज्ञानिक सारी दुनिया का होता है, पर युद्ध-काल में वह अपने देश का ही होता है।
पोलैंड के एक अति सामान्य परिवार में जनमी मैडम क्यूरी, दुनिया के श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों में से एक अपने आप में विलक्षण प्रतिभा थीं— फ्रांस की प्रथम डॉक्टरेट पानेवाली महिला दुनिया के किसी भी भाग में भौतिकी में डॉक्टरेट पानेवाली प्रथम महिला सोरबोन विश्वविद्यालय की पहली महिला प्रोफेसर भौतिकी में नोबल पुरस्कार पानेवाली प्रथम महिला दूसरा नोबल पुरस्कार पानेवाली प्रथम व्यक्तित्व। उपर्युक्त असाधारण प्रदर्शन करने-वाली मैरी क्यूरी को अत्यंत गरीबी, निरादर, अभावों का सामना करना पड़ा। खुले, खतरनाक व असुविधाजनक शेड में अपर्याप्त उपकरणों के उन्होंने दुनिया का विलक्षण तत्त्व ‘रेडियम’ खोज निकाला। अनुसंधान ही नहीं, सादगी, दान व सेवा में भी वे प्रथम रहीं। वे एक आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी, आदर्श पुत्रवधू, आदर्श माता, आदर्श सास बनीं। वे एक असाधारण शिक्षिका भी थीं। उन्होंने अनेक विद्वान् व वैज्ञानिक तैयार किए। हालाँकि उनके बाद आठ और महिलाओं को नोबल पुरस्कार मिला, पर मैडम की तुलना में अब भी कोई नहीं है। उन्होंने इस बात को भी प्रमाणित किया कि शांति-काल में वैज्ञानिक सारी दुनिया का होता है, पर युद्ध-काल में वह अपने देश का ही होता है। विश्वास है, मैडम क्यूरी के जीवन से प्रेरणा प्राप्त युवा पीढ़ी, विशेषत: युवतियाँ विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अनुसंधान आदि के क्षेत्र में अपूर्व योगदान करेंगी।
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12 जनवरी, 1960 को जनमे विनोद कुमार मिश्र मात्र तीन वर्ष की आयु में पोलियोग्रस्त हो गए थे। 80 प्रतिशत विकलांगता के बावजूद वह आज कर्मठता के शिखर पर एक उदाहरण बन गए हैं। सन् 1983 में उन्होंने रुड़की विश्वविद्यालय (आईआईटी) से इलेक्ट्रॉनिक्स व दूरसंचार में डिग्री प्राप्त की और फिर एम.बी.ए. किया। अब तक उनकी 50 पुस्तकें व 300 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। ‘विकलांगता: समस्याएँ व समाधान’, ‘विकलांग विभूतियों की जीवन-गाथाएँ’, ‘कमजोर तन, मजबूत मन’, ‘विकलांगों के लिए रोजगार’, ‘Eminent Disabled People of the World’, ‘Career opportunities for the Disabled’, ‘विकलांगों के अधिकार’, ‘इक्कीसवीं सदी में विकलांगता’, ‘विकलांग स्वस्थ और आत्मनिर्भर कैसे बनें’, ‘थॉमस अल्वा एडिसन’, ‘अल्बर्ट आइंस्टाइन’, ‘सौर ऊर्जा’, ‘चार्ल्स डार्विन’, ‘लियोनार्दो द विंची’, ‘सचित्र विज्ञान विश्वकोश’ (3 खंडों में) तथा ‘अल्फ्रेड नोबल’ आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इन्होंने ‘भारत में विज्ञान और भारतीय वैज्ञानिक’, ‘साधारण आविष्कारों की असाधारण सफलताएँ’, ‘वैज्ञानिक भारत का निर्माण’ एवं ‘अक्षय ऊर्जा स्रोत’ जैसी विज्ञान संबंधी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ भी दी हैं। उन्हें ‘राष्ट्रपति पदक’, हिंदी अकादमी द्वारा ‘साहित्यिक कृति सम्मान’, योजना आयोग द्वारा ‘कौटिल्य पुरस्कार’ तथा ‘प्राकृतिक ऊर्जा पुरस्कार’ जैसे अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
Alfred Nobel by Vinod Kumar Mishra
आज नोबल पुरस्कार के संबंध में कौन नहीं जानता! जी हाँ; दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार। नोबल पुरस्कार विश्व के महान् व सुविख्यात व्यक्ति अल्फ्रेड नोबल के नाम पर पड़ा। इसकी भी अपनी रोचक कहानी है। अल्फ्रेड नोबल को अपने जीवन में जितनी खुशियाँ यदा-कदा मिलीं; उनसे बहुत ज्यादा दु:ख उन्हें झेलने पड़े। उन्होंने बचपन में तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक पीड़ाएँ झेलीं। वे अपने आविष्कारों में सफल रहे; पर जीवनसाथी पाने में असफल। दानवीर नोबल पर देशद्रोह का आरोप लगा और वे दर-बदर भी हुए। उनकी मृत्यु का समाचार गलती से उनकी मृत्यु से काफी पूर्व ही एक समाचार-पत्र में छप गया और इस क्रम में उनकी ऐसी छीछालेदर हुई थी कि वे न केवल जीवन से डरने लगे वरन् इस बात पर भी काँप उठते थे कि कहीं मृत्यु के बाद उनके शव की दुर्गति न हो। अपने अंतिम क्रियाकर्म का नया त्वरित उपाय भी उन्होंने अपने आविष्कारी मस्तिष्क द्वारा निकाल लिया था। आखिर कैसे उनका व्यक्तित्व व कृतित्व उस फूल की तरह खिला; जो हर वर्ष प्रेरक सुगंध से पूरे संसार को अपने आविष्कारी पथ पर तेजी से; निर्बाध रूप से लिये चल रहा है? आइए; पढ़ें अल्फ्रेड नोबल की जीवन-गाथा।
Thomas Alva Edison by Vinod Kumar Mishra
आज आपके कमरे में जो bulb रौशनी करता है ,उसका आविष्कार Thomas Alva Edison ने किया था Thomas Alva Edison थॉमस अल्वा एडीसन Quotes in Hindi. विद्युत् बल्ब के जनक के नाम से मशहूर Edison को शुरू में फिस्सड्डी और मंद बुद्धि बालक समझा जाता था ,लेकिन निरंतर परिश्रम के बल पर एक दिन उन्होंने अपने अविष्कार से सारी दुनिया प्रकाशमय कर दी .Edison ने सिर्फ बल्ब ही नहीं ,बल्कि सैकड़ों अन्य अविष्कार भी दुनिया को दिए। वे अधिकांश समय अपनी प्रयोगशाला में बिताते थे . अविष्कारों को लेकर उनके जूनून को देखकर लोग उन्हें सनकी और पागल तक समझने लगे थे। बचपन में भी वे अजीब हरकतो के लिए जेन जाते थे . कहा जाता है कि एक बार चिड़ियों को कीड़े खाते देख उन्होंने यह सोचा कि उड़ने के लिए कीड़े खाना शायद जरुरी है . बस ,कुछ कीड़े इकट्ठे कर उसका घोल बनाकर उसे अपने दोस्त को पिलाने कि कोशिश की . वे देखना चाहते थे कि उनका दोस्त इसके बाद उड़ने लगेगा या नहीं . जाहिर है कि उन्हें सबने खूब डांटा और उनपर पाबंदिया भी लगाई गई . पर उनकी इसी जिज्ञासु प्रवित्ति ने दुनिया बदल दी . (थॉमस ए. एडीसन के अनमोल विचार)
Galileo Galilei by Vinod Kumar Mishra
गैलीलियो के मन में बचपन से ही विज्ञान व प्रौद्योगिकी के प्रति गहन जिज्ञासा थी। यह जिज्ञासा उनके मन में जीवन के अंतिम पल तक बनी रही। उन्होंने ब्रह्मांड का एक नया स्वरूप दुनिया के समक्ष रखा। वे न केवल श्रेष्ठ वैज्ञानिक और आविष्कारक थे; वरन् अपने धर्म में सच्ची आस्था रखते थे। उन्हें यह सहन नहीं था कि उनके धर्मग्रंथ में कोई अपूर्ण या असत्य विवरण हो। वे अद्भुत साहसी थे। सत्य का पक्ष बड़ी निर्भीकता से रखते थे और इसके लिए अपना बहुत कुछ दाँव पर लगा देते थे। वे अपने पक्ष में लोगों को एकत्रित करने में कुशल थे। इसके अलावा वे बहुत चतुर भी थे। जब उन्हें लगा कि उनकी बात लोगों के मन में इस प्रकार उतर गई हैं कि अंतत: वे सत्य सिद्ध हो ही जाएँगी; तो वे पीछे हट गए। उन्होंने अनावश्यक रूप से जान देने या शहीद कहलाने की आवश्यकता नहीं समझी। वे आधुनिक विज्ञान के जनक कहलाते हैं। उनके बाद वैज्ञानिकों ने उनके तौर-तरीकों का अनुकरण किया। ऐसे महान् वैज्ञानिक की जीवनी विद्यार्थियों; अध्यापकों एवं विज्ञान में रुचि रखनेवाले आम पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
Charles Darwin by Vinod Kumar Mishra
‘विकासवाद का सिद्धांत’ के लिए संपूर्ण विश्व में ख्यात चार्ल्स डार्विन दुनिया के श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों में से एक थे। बचपन से ही प्राकृतिक वस्तुओं में रुचि रखनेवाले चार्ल्स ने पाँच वर्ष समुद्री यात्रा में बिताए। उन्होंने अपना शोध कार्य ग्रामीण इलाके के दूर-दराज स्थित एक मकान में आरंभ किया था। तभी से उनके मस्तिष्क में ‘जीवोत्पत्ति का सिद्धांत’ जन्म ले चुका था। सन् 1844 में उन्होंने उसे विस्तार से कलमबद्ध भी कर लिया। वे लगातार प्रयोग-दर-प्रयोग करके अपने सिद्धांत को प्रामाणिक बनाते चले गए। डार्विन ने जीवन के हर पहलू पर प्रयोग किए। उन्होंने पत्तों; फूलों; पक्षियों; स्तनपायी जीवों—सभी को अपने प्रयोगों के दायरे में लिया। वे अपने सिद्धांतों को अनेक दृष्टिकोणों; तथ्यों व तरीकों से परखते थे। उनका संपूर्ण जीवन प्रयोगों में ही बीता। संसार को ‘विकासवाद’ का प्रसिद्ध सिद्धांत इन्हीं प्रयोगों की देन है। प्रस्तुत है एक महान् वैज्ञानिक की महान् जीवन-गाथा; जो रोचक व पठनीय होने के साथ ही संग्रहणीय भी है।
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Publisher:Prabhat Prakashan; 1st edition (1 January 2018)
Language:Hindi
Paperback:136 pages
ISBN-10:935048336X
ISBN-13:978-9350483367
Reading age:18 years and up
Item Weight:278 g
Dimensions:20 x 14 x 4 cm
Country of Origin:India
Packer:Kashiv Enterprises
Generic Name:Book