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(as of Jul 26, 2021 19:05:28 UTC – Details)
आप परेशान हैं?… एक के बाद एक समस्याएँ जीवन में आती ही रहती हैं… तो क्या आपको लगता है कि जीवन की प्रॉबलम्स कभी खत्म नहीं होंगी? क्या आप जीवन में हार मान रहे हैं?…
जिस तरह शरीर को अलग-अलग विटामिन चाहिए — उसी तरह हमारे मन को भी आशा, विश्वास, साहस और प्रेरणा जैसे विटामिनों की ज़रूरत होती है। लेखक ललित कुमार इन सभी को मनविटामिन कहते हैं। “विटामिन ज़िन्दगी” एक ऐसा कैप्स्यूल है जिसमें ये सभी विटामिन मिलते हैं।
हमारा सामना समस्याओं, संघर्ष, चुनौतियों और निराशा से होता ही रहता है — इन सबसे जीतने के लिए हमारे पास ‘विटामिन ज़िन्दगी’ का होना बेहद आवश्यक है।
विटामिन ज़िन्दगी एक किताब नहीं बल्कि एक जीवन है — एक ऐलान है कि इंसान परिस्थितियों से जीत सकता है। एक बच्चा जिसे चार साल की ही उम्र में ही पोलियो जैसी बीमारी हो गई हो — उसने कैसे सभी कठिनाइयों से जूझते हुए समाज में अपना एक अहम मुकाम बनाया — यह किताब उसी की कहानी कहती है। ज़िन्दगी में आने वाली तमाम चुनौतियों को लेखक ने किस तरह से अवसरों में बदला — यह उसी सकारात्मकता की कहानी है।
ललित का सफ़र “असामान्य से असाधारण” तक का सफ़र है। पोलियो जैसी बीमारी ने उन्हें सामान्य से असामान्य बना दिया, लेकिन अपनी मेहनत और जज़्बे के बल पर उन्होंने स्वयं को साधारण भीड़ से इतना अलग बना लिया कि वे असाधारण हो गए। इसी सफ़र की कहानी समेटे यह किताब ज़िन्दगी के विटामिन से भरपूर है।
इस किताब में सभी के लिए कुछ-न-कुछ है जो हमें हर तरह की परिस्थितियों का सामना करना सिखाता है।
From the Publisher
अपने जीवन के संघर्षों को किताब की शक्ल देने का ख़याल आपने ज़ेहन में कब आया?
वर्ष 2011 में मैंने पहली बार ‘विटामिन ज़िंदगी’ लिखने के बारे में सोचा था। उस समय न तो पुस्तक का शीर्षक यह था और न ही यह पुस्तक हिंदी में थी। शुरुआत में पुस्तक को मैंने अंग्रेज़ी में लिखा था, लेकिन क़रीब आधा लिख चुकने के बाद मैंने भाषा बदलते हुए इसे फिर से हिंदी में लिखना शुरू किया। पोलियो जैसी बीमारी के साथ मैंने बहुत कठिन जीवन बिताया है। जिन परिस्थितियों में मैं था, उनसे निकलकर आज मैं जहाँ आ पहुँचा हूँ, वह मेरे लिए एक आश्चर्यजनक व असाधारण बात है। इसलिए मैं अपने जीवन को ‘असामान्य से असाधारण तक’ की यात्रा कहता हूँ। अपने जीवन की कहानी खुलकर किसी को बता पाना आसान नहीं होता, और उसे सार्वजनिक कर देना तो और भी अधिक कठिन होता है। बहुत सारी उहा-पोह के बाद आख़िरकार 2019 में मैंने इस पुस्तक को पूरा किया और प्रकाशित किया।
एक मोटिवेशनल किताब को लिखते समय लेखक किस तरह की मनःस्थिति में होता है?
‘विटामिन ज़िंदगी’ एक मोटीवेशनल किताब से अधिक एक मोटीवेशनल ज़िंदगी है। मैंने इस किताब को यह सोचकर नहीं लिखा कि मैं एक मोटीवेशनल किताब लिख रहा हूँ। मैंने तो सीधे-सरल तरीक़े से केवल अपने अनुभव बयान किए हैं और सकारात्मकता पर फ़ोकस बनाए रखा है। बचपन से ही मुझे आत्मकथाएँ बहुत पसंद रही हैं- विशेषकर वैज्ञानिकों की आत्मकथाएँ। इन पुस्तकों में ज़िंदगी लिखी होती है जिससे पाठक को प्रेरणा मिलती है। मुझे कभी भी सेल्फ़-हेल्प पुस्तकें पसंद नहीं रहीं। किसी के द्वारा वास्तव में जिया गया जीवन आपको जो प्रेरणा दे सकता है, वह मात्र उपदेशात्मक बातें नहीं दे सकतीं।
आपकी किताब का नाम ‘विटामिन ज़िंदगी’ काफी रोचक टाइटल है। पुस्तक का यह नाम कैसे रखा गया?
किताब का शीर्षक क्या रखा जाए, इस पर मैंने काफ़ी विचार किया। कई दोस्तों ने भी इसमें सहयोग दिया। अंत में मुझे ‘विटामिन ज़िंदगी’ ही इस पुस्तक के लिए सबसे बेहतर नाम लगा। हालाँकि यह मेरा संस्मरण है- इसमें मेरे जीवन की घटनाएँ हैं, लेकिन मैंने इसे मन की सकारात्मक भावनाओं को केंद्र में रखते हुए लिखा है। मन की इन सकारात्मक भावनाओं, जैसे कि आशा, प्रेरणा, साहस, विश्वास, को मैं ‘मनविटामिन’ कहता हूँ, क्योंकि ये हमारे मन को उसी तरह स्वस्थ रखती हैं जिस तरह विटामिन A,B,C,D इत्यादि हमारे शरीर को स्वस्थ रखते हैं। ‘विटामिन ज़िंदगी’ एक कैप्सूल की तरह है जिसमें पाठक को ये सभी मनविटामिन भरपूर मात्रा में मिलते हैं।
दिव्यांगजनों पर केंद्रित आपके यूट्यूब चैनल ‘दशमलव’ के बारे में पाठकों को कुछ बताइए?
विकलांगता से जुड़े मुद्दों पर जानकारी देने के लिए मैंने www.wecapable.com नामक एक वेबसाइट आरंभ की थी। यह वेबसाइट अंग्रेज़ी भाषा में है लेकिन बहुत से विकलांगजन अंग्रेज़ी भाषा नहीं समझते। इसलिए मेरे पास निवेदन आने लगे कि यह जानकारी मैं हिंदी में भी उपलब्ध कराऊँ। इसीलिए मैंने दशमलव यूट्यूब चैनल और दशमलव वेबसाइट (www.dashamlav.com) की शुरुआत की। यूट्यूब चैनल youtube.com/dashamlav पते पर उपलब्ध है। इस चैनल पर मैं विकलांगजन के अधिकारों और समस्याओं के साथ-साथ उनके सर्वांगीण विकास से संबंधित वीडियो जारी करता हूँ। विकलांगता मुद्दों से जुड़ा यह हिंदी में सबसे बड़ा यूट्यूब चैनल है। इस समय इस चैनल के एक लाख से अधिक दर्शक हैं और इसे विकलांगजन के बीच खूब सराहना मिली है। मुझे भी ख़ुशी होती है कि मेरे इस प्रयास से इतने सारे विकलांगजन के जीवन में कुछ सुधार हो रहा है।
आपकी किताब में दिव्यांग महिलाओं की समस्याओं पर काफ़ी लिखा गया है। कोई घटना आप बताइए इस मुद्दे से जुड़ी?
विकलांगता महिलाओं के लिए अधिक बड़ी चुनौती होती है। दुनिया में सब कुछ ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है, जिनमें किसी प्रकार की विकलांगता नहीं है। यही विकलांगजन की सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि हमारे आस-पास के वातावरण को विकलांगजन के लिए बनाया ही नहीं जाता। इससे सभी विकलांगजन प्रभावित होते हैं लेकिन महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक मुश्किल होती है। इसके अलावा सामाजिक तौर-तरीक़े और व्यवहार में भी इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है कि विकलांगता से प्रभावित कोई व्यक्ति उसे कैसे निबाहेगा।
मैंने पुस्तक में कई उदाहरण दिए हैं। उनमें से एक शौचालय का है। घर में शौचालय न होने से पुरुष विकलांगजन को भी बहुत अधिक असुविधा होती है, लेकिन इस संदर्भ में महिला विकलांगजन की समस्या का तो आप आकलन भी नहीं कर सकते। विकलांग पुरुष तो फिर भी जैसे-तैसे काम चला लेते हैं लेकिन महिलाओं को परेशानियों के साथ-साथ, शर्मिंदगी भी होती है और कभी-कभी तो उन्हें यौन-शोषण का सामना भी करता पड़ता है। विवाह जैसे विषयों में भी महिला की विकलांगता बहुत बड़ी समस्या के रूप में सामने आती है।
आप ‘कविता कोश’ के संस्थापक और निदेशक हैं। इस प्लेटफॉर्म को युवाओं का काफ़ी प्यार मिल रहा है। इसकी शुरुआत कैसे हुई?
हिंदी कविता में मेरी रुचि वर्ष 2000 के आस-पास शुरू हुई। फिर जब हाथों में इंटरनेट से जुड़ा एक कंप्यूटर आया तो लगा जैसे कविताओं का ख़ज़ाना हाथ लग गया हो। मैंने देखा कि वैसे तो काफ़ी सारा हिंदी काव्य इंटरनेट पर मौजूद था लेकिन किसी एक स्थान पर संकलित नहीं था। इससे मुझ जैसे काव्य प्रेमियों को काफ़ी परेशानी होती थी क्योंकि किसी एक कविता कोश खोजना मुश्किल काम था। लोगों ने काव्य को इंटरनेट पर संजोने के छोटे-छोटे और अव्यवस्थित प्रयास किए थे। कोई एक ऐसा बड़ा स्रोत उपलब्ध नहीं था जहाँ पर आप सब कुछ पढ़ने जा सकें। इसीलिए मेरे मन में भारतीय काव्य का पहला ऑनलाइन विश्वकोश बनाने का विचार आया। कविता कोश की शुरुआत 05 जुलाई, 2006 को हुई थी। वर्ष 2006 आते-आते हिंदी काव्य में मेरी रुचि काफ़ी बढ़ चुकी थी और मुझे सॉफ़्टवेयर व वेब-डेवलपमेंट का ज्ञान तो था ही। मेरी इन भाषा और तकनीक की मिली-जुली योग्यताओं की वजह से कविता कोश जैसी परियोजना आरंभ करना मेरे लिए अधिक मुश्किल नहीं रहा। वेब डेवेलपर होने के कारण इस कोश के लिए माध्यम के रूप में इंटरनेट का चुनाव भी मेरे लिए स्वाभाविक था।
नई वाली हिंदी को लेकर आप क्या कहना चाहेंगे?
हिंद युग्म द्वारा प्रसारित नई वाली हिंदी के माध्यम से अनेक युवा लेखक अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं। नई वाली हिंदी एक ऐसा मंच है जहाँ नवलेखन को समर्थन व प्रोत्साहन मिलता है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी नेमत है। बाक़ी इससे आगे लेखक की क्षमता और उसके लिखे पर ही निर्भर करता है कि वह साहित्य के रूप में पाठक को क्या दे पाता है। मुझे प्रसन्नता है कि इस तरह का एक मंच हिंदी के लेखकों के लिए उपलब्ध है। इसकी बड़ी आवश्यकता थी और हिंदी लेखकों को इसका लाभ उठाना चाहिए।
Publisher:Eka/Hind Yugm (24 May 2019)
Language:Hindi
Paperback:256 pages
ISBN-10:9388689178
ISBN-13:978-9388689175
Item Weight:590 g
Dimensions:14 x 2.5 x 21 cm
Country of Origin:India